Kabir Bijak PDF | संपूर्ण कबीर बीजक

यहां पर कबीर दास जी का ‘बीजक’ डाउनलोड कर पढ़ने के लिए दिया जा रहा है। ‘बीजक’ कबीर दास जी द्वारा भारतीय समाज और विभिन्न धर्मों एवं मजहबों पर कही गई बातों का संग्रह है। यह कबीर दास की सबसे मौलिक ग्रंथों व वाणियों के संग्रह में से एक है। यह कबीर पंथी लोगों के लिए एक तरह का मार्ग दर्शक एवं धर्म ग्रंथ है। यह ऐसी रचना है जिसमें कबीर दास जी का क्रांतिवादी नजरिया समाज के सामने आया है। नीचे Sampuran Kabir Bijak PDF का लिंक दिया गया है।

दोस्तों, भारतीय साहित्य में कबीर का “बीजक” एक चमकता हुआ धागा है, जो आध्यात्मिक ज्ञान, सामाजिक आलोचना और काव्य सौंदर्य को जोड़ता है। यह बीजक मानव जीवन, ईश्वर और सभी चीजों के आपसी संबंधों की गहराई से पड़ताल करता है।

Kabir Bijak Hindi PDF

हम देखते हैं कि कबीर सहज अनुभव को स्वच्छंद रूप विधान में अभिव्यक्त करते हैं, तो समान अलंकारों के प्रयोग क्रमिक रूप में अथवा आरोपित होकर समग्र बिम्ब रूप में प्रस्तुत हो जाते हैं। उस परम तत्व के साथ सम्मिलन की कल्पना में कहा गया है। सांसारिक जीवन का गढ़ का रूपक सांगोपांग प्रस्तुत किया गया और उसके विधान के माध्यम से मुक्त हो कर परम पद पाने की कल्पना है।

सांसारिक माया को जीतना है, उसकी दोहरी दीवाल और गहरी खाई है, इस जीवन में माया का कठिन घेराव माना गया है। फिर उपमान-उपमेय का संयोजन चलता है। काम किवाड़े हैं, दुःख-सुख द्वारपाल हैं, क्रोध प्रधान है, लोभ भारी दुन्द मचाने वाला है। इनका अधिपति मन का राजा है। आगे रूपक की कल्पना में इस मन रूपी राजा के सैनिकों की सज्जा का वर्णन है। ये सारे मानव-शरीर में क्रियाशील हैं, अतः गढ़ पर रण विजय पाना जटिल हो रहा है। आगे के क्रम में रूपक के विधान में साधना-मार्ग का चित्रण चलता है।

और युद्ध आगे बढ़ता है- सत्य-सन्तोष से लड़ाई चलती है और गढ़ के द्वार टूट जाते हैं और साधु-संगति और गुरु-कृपा से गढ़ का राजा पकड़ा जाता है। इस पूरे चित्र में बिम्ब-योजना कलात्मक स्तर पर व्यंजना करने में सफल हुई है।

सांसारिक जीवन में जीव की स्थिति आत्मा और ब्रह्म के एकमेक भाव को व्यंजित करने के क्रम में उदाहरण, दृष्टांत, उपमा और अर्थान्तरन्यास जैसे अलंकारों के उपमेय-उपमान का संयोजन किया गया है और उसमें रूपक-विधान सांग रूप अनुभव का विशद बिम्ब प्रस्तुत करता है। इस अनुभव को व्यंजित करने के क्रम में अप्रस्तुतों के बिम्ब चित्रों का अंकन होता चलता है।

बाद निम्न-चित्र में परिवर्तन होता है। सहज साधना का कवि स्तर प्रस्तुत करता है, जिसमें नट, बाजीगर और गारूड़ी की क्रीड़ाओं में प्रतीक-विधान का उपयोग किया गया है। अपनी ‘युक्ति’ को पाकर इन्हें विष व्यापता नहीं, इन्द्रियों का आकर्षण मोहत नहीं और न विष का प्रभाव घेरता है और साधना के इस स्तर पर परम तत्व का अनुभव सहज हो जाता है।

सांसारिक माया-प्रपंच के बीच अपनी कारुणिक स्थिति का बहुत मार्मिक निम्न-विधान कवि करता है। चित्र का क्रमशः विकास होता है “सांसारिक जीवन में काम-क्रोध-अहंकार व्याप्त रहा है और माया के मोहजाल से छुटकारा नहीं मिलता। बिन्दु रूप उत्पत्ति के साथ यह क्लेप जो शुरू हुआ उसे कभी छुटकारा नहीं मिल पाया। सांसारिक तत्व और जीव की इन्द्रियां जीवन में संग-संग उसे गंवा रही है। माया भामिनी सर्पणों के रूप में तन-मन डस रही है। जिससे उठती लहरों की सीमा नहीं है। गुरु रूपी गारूड़ी के मिले बिना विकराल विष जीवन में व्याप रहा है।”

सांसारिकता के इस बिम्ब के साथ कवि वेदना को व्यक्त करते हुए अपने आराध्य के ‘दीदार’ की आकांक्षा व्यक्त करता है। इस क्रम में गांव को सांसारिकता का प्रतीक मानकर अनेक प्रकार के अप्रस्तुतों-प्रस्तुतों के विधान से पूरा बिम्ब रचा गया है। इस रचनात्मक विधान में गांव के जीवन और उसकी व्यवस्था के विभिन्न पात्रों की प्रतीक रूप में अभिव्यक्ति हुई है। माया के आकर्षणों से मुक्त होकर आत्मानुभव की अभिव्यक्ति में बिम्ब-विधान रूपकों के विशिष्ट संयोजन से किया गया है – अब मुझे नाचना नहीं आता और न मेरा मन मृदंग बजा रहा है।

सांसारिक तृष्णाओं की गागर फूट गयी है। काम का चोला पुराना हो चुका है और उसके भ्रम से मुक्त हो चुका हूं। सांसारिक जीवन बहुरूपिया के अभिनय में बीता, अब इस अनेकरूपता से मुक्त हो गया हूं। राम नाम के वश में होकर सगे-संबंधियों से अलग हो गया हूं। अनुभव के स्तर पर ही कबीर परात्पर के साथ अपनी स्थिति की व्यंजना करते हैं। मदिरा पान की मादकता की उपमा ब्रह्मानन्द से देने की परम्परा रही है। मदिरा निकालने की प्रक्रिया के आधार पर रूपक के सांग विकास-क्रम में परमानन्द का अनुभव-बिम्ब संयोजित करना कबीर को प्रिय है। यद्यपि इस रूपक-विधान में ‘योग-साधना’ की प्रक्रिया का उपयोग किया गया है, पर स्मरण रखना है कि उनकी सहज साधना में यह सारी प्रक्रिया भी अप्रस्तुत प्रतीक रूप में उसके परमानन्द अनुभव बिम्ब को संयोजित करती है। इस साधना-भूमि पर निरन्तर योग की समाधि की भांति इस भूमिका से उतरने की बात नहीं मानी गयी है।