मित्रों, भगवद गीता एक कालातीत शास्त्र है, जो दुनिया के सभी पृष्ठभूमि के लोगों को स्वयं को समझने में मदद करती है। यह मनुष्य के लिए सार्थक और परिपूर्ण जीवन जीने के लिए एक मार्गदर्शिका है। अगर आप संपूर्ण भगवद गीता की जगह केवल उसका सार पढ़ना चाहते है तो नीचे संपूर्ण गीता सार PDF दिया गया है।
श्रीमद्भगवद्गीता जीवन के कई पहलुओं पर गहराई से विचार करता है। यहाँ पीडीएफ में दिया गया गीता का सार गीता के संदेश को सरल शब्दों में समझाने की कोशिश करता है।
भागवत गीता का मूल सार क्या है?
भागवत गीता का मूल सार धार्मिकता और अपने स्वयं के वास्तविक स्व को जानने-समझने की बातों में निहित है। गीता का कहना है कि हम सभी प्राणी दिव्य आत्मा के अंश हैं, इसलिए हमें अपना पूरा जीवन सदाचार (virtue), कर्तव्य (duty) और करुणा (compassion) के साथ जीना चाहिए।
गीता कहती है कि हर प्राणी को बेवजह किए गए कार्यों के परिणामों के प्रति आसक्त होकर नहीं बैठना चाहिए। उसे परमात्मा को याद करते हुए अपने कर्तव्यों का हृदय से पालन करते रहना चाहिए। गीता सिखती है कि प्रत्येक प्राणी के जीवन की एक विशिष्ट भूमिका है और हर प्राणी उस भूमिका का ईमानदारी से निर्वहन करके आंतरिक शांति को प्राप्त कर सकता है।
हमें संपूर्ण गीता पढ़नी चाहिए या केवल उसका सार?
यदि आप भागवत गीता के बारे कुछ भी नहीं जानते हैं, तो मेरी सलाह रहेगी की आप सबसे पहले इसका सारांश ही पढ़े। इससे आपको गीता के अध्यायों और इसकी शिक्षाओं का अवलोकन करने का मौका मिलेगा। एक बार जब आपको गीता की बुनियादी बातों की समझ हो जाए, तब आप संपूर्ण गीता के प्रसिद्ध टीकाओं को पढ़ने का निर्णय ले सकते हैं। संपूर्ण गीता के श्लोकों को पढ़ना आपके लिए एक मूल्यवान और समृद्ध अनुभव हो सकता है; लेकिन फिर भी यदि आपके पास समय कम है या भाषा को समझने में कठिनाई आ रही है तो सारांश से शुरुआत करना आपके लिए बहुत सहायक होगा।
क्या युवा लड़कों और लड़कियों को गीता पढ़नी चाहिए?
हां, नौजवान लड़के और लड़कियां निश्चित रूप से श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ कर सकते हैं। इसमें जीवन के लिए मूल्यवान पाठ, नैतिक शिक्षाएँ और आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि मौजूद हैं जो सभी लोगों के लिए समान होती हैं, चाहे वो जीवन के किसी भी पड़ाव पर क्यों न हो। गीता कर्तव्य, जीवन में धर्म के महत्व और वास्तविकता की प्रकृति (nature of reality) जैसी अवधारणाओं को संबोधित करता है, जो सभी लोगों और संस्कृतियों पर समान रूप से लागू होता हैं। ये सार्वभौमिक अवधारणाएँ युवाओं और युवतियों के नैतिक समझ को आकार देने में बहुत उपयोगी सिद्ध होते हैं।
गीता और अष्टावक्र गीता में क्या अंतर है?
भागवत और अष्टावक्र, दोनों ही भारतीय हिंदू संस्कृति के अति महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं। दोनों ही ग्रंथों में आध्यात्मिकता, दर्शन, और नैतिकता पर ऐसी शिक्षाएँ हैं, जो मानव जीवन के हर पहलू को प्रभावित करती हैं। हालांकि, दोनों ग्रंथों के बीच कुछ प्रमुख अंतर हैं:
- दोनों ही गीता दो महापुरुषों के बीच का संवाद है। श्रीमद्भागवद्गीता का जन्म तब हुआ जब भगवान कृष्ण ने कुरूक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन के साथ संवाद किया था वही अष्ट्रावक्र गीता का जन्म ऋषि अष्टावक्र और राजा जनक के मध्य हुए संवाद के उपरांत हुआ था।
- भागवत गीता का ज्ञान सामान्य व्यक्ति से लेकर आध्यात्म तथा दर्शन को गहराई से जानने वाले लोगों तक के लिए बहुत सुलभ है। इसकी बातें थोड़े से मानसिक प्रयास के बाद सभी को आसानी से समझ में आ जाती हैं। वही, अष्टावक्र गीता सामान्य लोगों के लिए नहीं हैं। ये उन्हीं लोगों के लिए हैं जो पहले से ही आध्यात्मिक ज्ञान में पारंगत हैं।
- भागवत गीता में अनेक विषयों की विस्तृत व्याख्या है, जिसमें वास्तविकता की प्रकृति, मुक्ति के विभिन्न मार्ग और कर्तव्य का महत्व आदि शामिल हैं। वही, अष्टावक्र गीता केवल भारतीय दर्शन के गैर-द्वैतवादी सिद्धांत, अद्वैत वेदांत की शिक्षाओं पर केंद्रित है।
- भागवत गीता की बातें अधिक व्यावहारिक और क्रियान्मुखी हैं, जो मनुष्य को एक सार्थक जीवन जीने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करती हैं। वही दूसरी ओर, अष्टावक्र गीता की बातें अधिक सैद्धांतिक (theoretical) और आत्मनिरीक्षणात्मक (introspective) हैं, जो मनुष्य को वास्तविकता और स्वयं की वास्तविक प्रकृति को समझने का मार्ग प्रशस्त करती हैं।
गीता में महिलाओं के बारे में क्या लिखा है?
गीता में सिर्फ महिलाओं को केंद्रित करके कुछ नहीं लिखा गया है। यह सार्वभौमिक आध्यात्मिक शिक्षाओं पर केंद्रित ग्रंथ है। इसकी बातें महिला-पुरुष की परवाह किए बिना सभी पर लागू होती हैं।